रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 92 - अर्जुन और सुभद्रा का द्वारिका में विवाह
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 92 - Arjun Aur Subhadra Ka Dwarika Mein Vivah
बैकुण्ठ से वापस आते समय अर्जुन के अनुरोध पर श्रीकृष्ण उसे पुनः अपना चतुर्भुज रूप दिखाते हैं। तब अर्जुन प्रार्थना करते हैं कि हे मधुसूदन, यदि अर्जुन भी आप हैं तो मुझे इस वृहद स्वरूप में लीन कर लीजिये। श्रीकृष्ण मना करते हैं और कहते हैं कि अभी इसका समय नहीं आया है। अभी इस अर्जुन रूप में बड़ी भयंकर विनाशकारी लीला करनी है। तुम्हारे इस शरीर के द्वारा अभी महाभारत का युद्ध करना है। इसके बाद बलराम हस्तिनापुर से द्वारिका वापस आते हैं और श्रीकृष्ण को बताते हैं कि मैं बहन सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ तय कर आया हूँ। अब हमारी छुटकी हस्तिनापुर की महारानी बनेगी। बलराम के इस निर्णय से निराश अर्जुन इन्द्रप्रस्थ वापस जाने की तैयारी करता है। उस रात सुभद्रा रुक्मिणी से कहती हैं कि यदि मेरा विवाह दुर्योधन से किया गया तो मेरा मृत शरीर ही हस्तिनापुर जायेगा। तभी श्रीकृष्ण वहाँ आते हैं और सुभद्रा को वैसा ही सब दोहराने का परामर्श देते हैं जैसा उन्होंने रुक्मिणी से विवाह करने के लिये किया था। इसके बाद श्रीकृष्ण अर्जुन को बुलवाते हैं और कहते हैं कि जब किसी दूसरे का हाथ तुम्हारी प्रेमिका की तरफ बढ़ रहा है तो तुम्हें उसकी रक्षा करनी चाहिये। अर्जुन जानना चाहते हैं कि यह कैसे होगा। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि रुक्मिणी तुम्हे समझा देगी कि ऐसी परिस्थिति में उसने क्या किया था। रुक्मिणी अभी भी कुछ नहीं समझ पातीं। तब श्रीकृष्ण पूछते हैं कि सुभद्रा गौरी मन्दिर पूजा करने किस दिन जाती है। रुक्मिणी उत्तर देती हैं कि शुक्रवार को। श्रीकृष्ण कहते हैं कि तो कल शुक्रवार है। और इसके साथ अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराते हैं। रुक्मिणी उनका संकेत समझकर प्रसन्न हो उठती हैं। अगले दिन सुभद्रा बलराम से कहती हैं कि भैया, मैं गौरी पूजा के लिये मन्दिर जा रही हूँ। आप भी प्रार्थना कीजिये कि माता मेरी पुकार सुन लें। बलराम कहते हैं कि मेरी बहना माता से जो भी माँगेंगी, माता उसे जरूर पूरी करेंगी और तुम सदा सुखी रहोगी। श्रीकृष्ण रुक्मिणी के कान में धीरे से कहते हैं कि इससे कहो कि अर्जुन रथ में पीछे बैठे और सुभद्रा सारथी बने। रुक्मिणी यह बात सुभद्रा के कान में कहती है। गौरी मन्दिर में सुभद्रा पूजा करके बाहर निकलती हैं। तभी अर्जुन वहाँ रथ लेकर पहुँचते हैं, सुभद्रा का हाथ थामते हैं और उनके अंगरक्षकों को सावधान करते हुए घोषणा करते हैं कि सावधान, मैं कुन्तीपुत्र अर्जुन देवीमाता को साक्षी मानकर सुभद्रा को अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ। मैं इसे अपने साथ इन्द्रप्रस्थ ले जा रहा हूँ। यदि किसी में बल अथवा साहस है, तो मेरा सामना करे। सुभद्रा श्रीकृष्ण का सन्देश अर्जुन को देती हैं और अर्जुन रथ के पीछे बैठ जाते हैं और सुभद्रा रथ की लगाम थाम कर सारथी बन जाती हैं। सुभद्रा रथ आगे बढ़ाती हैं किन्तु कोई सैनिक रथ को रोकने का साहस नहीं दिखाता। सुभद्रा की दासियां महल में जाकर बलराम को अर्जुन द्वारा सुभद्रा का हरण कर लेने की सूचना देती हैं। बलराम अर्जुन को दण्ड देने के लिये अपनी गदा उठाते हैं किन्तु श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं अर्जुन को दण्ड देने से पहले यह विचार कर रहा हूँ कि वो अपराधी है भी या नहीं। इसके बाद वह एक अंगरक्षक से पूछते हैं कि रथ कौन चला रहा था। अंगरक्षक उत्तर देता है कि राजकुमारी रथ चलाकर ले गयी हैं और अर्जुन पीछे बैठे थे। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इसका अर्थ तो यह हुआ कि अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण नहीं किया बल्कि राजकुमारी सुभद्रा ने अर्जुन का अपहरण किया है। इससे बलराम चक्कर में पड़ते हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि सुभद्रा अर्जुन से प्रेम करती है किन्तु जब उसके भाईयों ने उसके सच्चे प्रेम को ठुकरा दिया और किसी सम्राटपुत्र से उसका विवाह तय कर दिया तो वो बेचारी विवश हो गयी और अपने प्रेमी से गंधर्व विवाह करके अपने ससुराल चली गयी। बलराम सोच में पड़ते हैं। वह कहते हैं कि ऐसे में मेरे वचन का क्या होगा जो मैंने हस्तिनापुर में दुर्योधन को दिया था। श्रीकृष्ण कहते हैं कि दाऊ भैया, आपने सुभद्रा को भी तो सदा सुखी रहने का आशीर्वाद दिया था। वो दुर्योधन के साथ सुखी नहीं रह पाती तो क्या आपका यह आशीर्वाद मिथ्या न हो जाता। वह यह भी कहते हैं कि इन्द्रप्रस्थ हस्तिनापुर से अधिक वैभवशाली और धर्म आधारित राज्य है। सुभद्रा वहाँ अधिक सुखी रहेगी। श्रीकृष्ण के मनाने पर बलराम सुभद्रा और अर्जुन के विधिवत विवाह के लिये सहमत हो जाते हैं। इसके बाद शुभ मुहूर्त पर अर्जुन सुभद्रा का पाणिग्रहण संस्कार द्वारिका में सम्पन्न होता है।
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Dec 31, 2020
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