रामानंद सागर की श्री कृष्ण भाग 77: भीष्म-विदुर संवाद और पांडवों का अज्ञातवास 🛡️

देखिए भीष्म और विदुर के बीच महत्वपूर्ण वार्ता और पांडवों का पांचाल में अज्ञातवास का इतिहास। साथ ही, नई भज गोविंदम गीत भी शामिल है।

रामानंद सागर की श्री कृष्ण भाग 77: भीष्म-विदुर संवाद और पांडवों का अज्ञातवास 🛡️
Tilak
4.6M views • Dec 23, 2020
रामानंद सागर की श्री कृष्ण भाग 77: भीष्म-विदुर संवाद और पांडवों का अज्ञातवास 🛡️

About this video

Watch This New Song Bhaj Govindam By Adi Shankaracharya : https://youtu.be/uRxtXh4oNaM

तिलक की नवीन प्रस्तुति "श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम्" अभी देखें : https://youtu.be/uRxtXh4oNaM

_________________________________________________________________________________________________ बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏

Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0

Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 77 - Bhishma Aur Vidur Varta. Pandavon Ka Panchal Desh Mein Agyaatvaas

बुआ कुन्ती और पाण्डवों के लाक्षागृह की आग में जलकर मरने का समाचार अक्रूर द्वारिका में श्रीकृष्ण को देते हैं। बलराम कहते हैं कि हस्तिनापुर सब बहुत दुखी होंगे। हमें वहाँ चलकर सांत्वना देनी चाहिये। इस पर श्रीकृष्ण कड़वा सच कहते हैं कि हस्तिनापुर के राजपरिवार में कौन ऐसा है जो पाण्डवों के मरने पर सच्चे मन से दुखी हो। यहाँ तक कि महाराज धृतराष्ट्र के मन में एक छिपी हुई प्रफुल्लता होगी। श्रीकृष्ण के इस धीरज पर बलराम को शंका होती है। वह श्रीकृष्ण से कहते हैं कि अर्जुन आपको बहुत प्रिय है तो उसकी मृत्यु पर आप तड़पे क्यों नहीं हैं। तब श्रीकृष्ण रहस्यपूर्ण ढंग से कहते हैं कि जिसकी रक्षा का वचन स्वयं मैंने दिया हो, उसकी मृत्यु कैसे हो सकती है। आप यह क्यों नहीं सोचते। श्रीकृष्ण की बात का अर्थ समझकर बलराम और अक्रूर प्रसन्न होते हैं। हस्तिनापुर में भीष्म को पाण्डवों के जलकर मरने पर विश्वास नहीं होता। वह द्रोणाचार्य से कहते हैं कि भीम अपने एक प्रहार से महल की कोई भी दीवार तोड़कर बाहर निकलने का रास्ता बना सकता था। अर्जुन अपने एक बाण से इतनी वर्षा करा सकता था कि पूरी आग बुझ जाये। ऐसे वीर इस तरह चूहे की मौत नहीं मर सकते। एक बार वेद व्यास जी ने भी मुझसे कहा था कि अर्जुन अपनी धनुर्विद्या से पूरा संसार जीत कर अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को चक्रवर्ती सम्राट बनायेगा। वेदव्यास जी की बात भी कैसे झूठी हो सकती है। इस पर आचार्य द्रोण कहते हैं कि वेदव्यास जी की ज्योतिष गणना में भूल हो सकती है। महर्षि वशिष्ठ ने श्रीराम के राज्याभिषेक का जो मुहूर्त निकाला था, उस मुहूर्त पर राज्याभिषेक के स्थान पर श्रीराम का वनवास हुआ था। भीष्म को इस हादसे में षड्यन्त्र की बू आने लगती है। वह विदुर को बुलाकर उनका मत पूछते हैं। विदुर उन्हें शकुनि के षड्यन्त्र और पाण्डवों के बच निकलने के बारे में बताते हैं। भीष्म सन्तोष की सांस लेते हैं। पांचों पाण्डु पुत्र ब्राह्मण वेश में पांचाल में शरण लेते हैं और द्वार-द्वार भिक्षा माँगकर अपना जीवन बसर करते हैं। उस नगर पर एक नरभक्षी राक्षस का आतंक है। नगर सभा ने उससे समझौता किया था कि अगर वो सामूहिक हत्याएं न करे तो हर दिन नगरवासी उसके भोजन के लिये एक छकड़ा अनाज, दूध के दस मटके और एक आदमी स्वयं पहुँचा दिया करेंगे। इस तरह हर घर से बारी-बारी एक आदमी नरभक्षी राक्षस का भोजन बनने भेजा जाता था। आज उस ब्राह्मण परिवार के मुखिया गंगाधर की बारी थी जिन्होंने पाण्डवों को शरण दी हुई थी। गंगाधर नगर प्रमुख से विनती करता है कि उसे एक वर्ष की मोहलत दे दी जाये क्योंकि उसे अपनी जवान बेटी का विवाह करने की जिम्मेदारी पूरी करनी है। परन्तु नगर प्रमुख कहता है कि इस तरह की कोई न कोई समस्या हर घर में है और यदि राक्षस को उसकी खुराक नहीं भेजी गयी तो वह पूरे नगर में आतंक मचा देगा। इस पर गृहस्वामिनी अपने पति के स्थान पर स्वयं जाने की जिद करती है। माता-पिता का एक दूसरे प्रति इतना प्रेम और धर्म निष्ठा देखकर ब्राह्मण कन्या आगे आती है और रोते हुए कहती है कि एक दिन मेरे पिता द्वारा मेरा कन्यादान होना है और मुझे इस घर को छोड़कर जाना है तो यह मान लिया जाये कि आज मेरी विदाई का दिन आ गया है और मुझे नरभक्षी राक्षस को सौंप दिया जाये। तभी कुन्ती और पाण्डव वहाँ पहुँचकर सारी बातें सुन लेते हैं। कुन्ती कहती हैं कि इस ब्राह्मण दम्पत्ति ने हमें शरण देकर उपकृत किया है। अतएव इस उपकार के बदले मैं अपने एक पुत्र को नरभक्षी के पास भेजने के लिये प्रस्तुत करती हूँ। किन्तु ब्राह्मण इसका प्रतिवाद करते हुए कहता है कि अतिथि की सेवा करने के बजाय उसके प्राण संकट में डालना अधर्म है। तब कुन्ती कहती हैं कि मैं अपने पुत्र भीम को राक्षस के पास भेजना चाहती हूँ, उसके पास गुरु का दिया एक मंत्र है जिससे वह किसी भी राक्षस को मार सकता है। भीम एक छकड़े में अनाज और दस मटका खीर भरकर राक्षस के पास ले जाते हैं किन्तु उसे उकसाने के लिये मटकों में हाथ डालकर सारी खीर खुद खाने लगते हैं। राक्षस अपनी कटीली गदा से भीम पर प्रहार करता है किन्तु भीम का कुछ नहीं बिगड़ता बल्कि वह अपना शरीर मंत्र द्वारा राक्षस जितना विशाल कर लेते हैं और फिर राक्षस के दोनों सींग उखाड़ कर उसका वध कर देते हैं।

In association with Divo - our YouTube Partner

#SriKrishna #SriKrishnaonYouTube

Tags and Topics

Browse our collection to discover more content in these categories.

Video Information

Views

4.6M

Likes

37.3K

Duration

45:25

Published

Dec 23, 2020

User Reviews

4.5
(912)
Rate:

Related Trending Topics

LIVE TRENDS

Related trending topics. Click any trend to explore more videos.